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विपति के समय ,संसार की परिवर्तंशिलता

antardwand
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जिस तरह कटा हुआ वृक्ष फिर हरा भरा होकर फ़ैल जाता हे; शीण चन्द्रमा फिर पूर्ण हो जाता हे ;सूर्य और चन्द्रमा , ग्रहण लगने पर भी पुनः ग्रहण मुक्त हो जाते हे; बादलों से आच्छादित आकाश फिर निर्मल और निर्मेघ हो जाता हे उसी तरह मनुष्य भी एक न एक दिन विपति से छुटकारा पाकर सुखी और स्वतंत्र हो जाता हे,इसमें संदेह नही i फिर विपति को जितना भयावह समझा जाता हे वह वेसी होती नही हे,क्यूंकि ईश्वर जिनके धेर्य और धर्म की परीक्षा करना चाहता हे उन पर ही विपति डालता हे i .उन्नति की क्षमता वालो पर ही विपतिया आती हे नदी की बाड़ बुरी लगती हे पर जब वह चली जाती हे तब खेती को उपजाऊ करके छोड़ जाती हे, इसी तरह् ज्वालामुखी का लावा भी भूमि की उर्वरक क्षमता को अत्यधिक बड़ा देता हे ईसी तरह मानवीय विप्तियों से भी लाभ होते हे , मित्रो और सगे सम्बन्धियों की असल पहचान विपति के समय ही होती हे i विपति के समय ,संसार की परिवर्तंशिलता को समझते हुआ,परमात्मा पर अपने को छोड़ कर धेर्य और साहस का साथ न छोड़ते हुआ व्यक्ति को अपने सद्मार्ग पर ही चलना चाहिए i व्यक्ति को चाहिए सुख के समय सुख और दुःख के समय दुःख का ही सेवन करना चाहिए इ यानि संसार परिवर्तनशील हे i फूल कभी मुरझाता हे और कभी खिलता हे i वृक्ष के पते कभी गिर जाते हे और कभी हरे भरे पत्तों से उसकी शोभा हो जाती हे,इसीलिए जीवन में परिवर्तन से न घबराए बल्कि यह सोचे की आप कितने भाग्यशाली हे जो परमात्मा ने आपको परीक्षा के काबिल समझा हे ..परीक्षा तो योग्य व्यक्ति ही देता हे और ज्ञानी पास भी हो जाता हे i

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