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शिक्षक दिवस और मेरा अनुभव

antardwand
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प्रिय पाठको सादर नमस्कार
जैसा की आप सभी जानते है ,आने वाले वाले ५ सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है .यह दिन आते ही मुझे अपने विद्यालय मे बिताये हर लम्हे याद आ जाते है .वो बचपन,वो सहेलियां वो पसंदीदा शिक्षक और उनसे जुडी हर वो बात जिसने मेरे जीवन पर बहुत ही गहरा प्रभाव छोड़ा है.उस समय तो हमे शिक्षक की डांट भी बहुत बुरी लगती थी ,लेकिन अब जब हमारा सामना वास्तविकता से हो चूका है और भले बुरे का भी काफी हद तक ज्ञान हो चूका तो याद आता है हम कितने अज्ञानी थे की एक अच्छे शिक्षक की हमे पहचान नही थी.यदि वह हमे डांटता या मारता था तो उसके पीछे कही न कही हमारी ही भलाई होती थी .आज चाहकर भी वो दिन वापस नही आ सकते .आपको अपनी ही एक घटना बताती हु जिसने मुझे हिंदी मे प्रथम बना दिया था.यह घटना उस समय की है जब मे सातवी कक्षा मे थी.जेसा की इस उम्र मे होता ही है मुझे अपनी सहेली से बहुत लगाव था .हिंदी का पीरियड था .में अपनी सहेली से बातें करने मे मशगुल थी.मेरी हिंदी की शिक्षिका का नाम उमा अगरवाल था.मे इस बात से अनजान थी की मेरी शिक्षिका का ध्यान मेरी तरफ है .उन्होंने मुझे अचानक ही आवाज़ लगाकर खड़ा किया और पढाये जा रहे विषय से सम्बंधित १ प्रशन पूछा.मेरा ध्यान बातो मे होने के कारण में प्रश्न का उत्तर नही दे पाई.बस मेरा इतना ही कहना था की मुझे इसका उत्तर नही पता,उन्होंने लगातार मुझे २-३ जोरदार थप्पड़ मार दिए.मे समझ नही पाई और रोने लगी .अगला पीरियड गणित का था वो शिक्षिका मुझे बेहद पसंद करती थी .मुझे रोता देखकर उन्होंने पूछा की क्या बात है तो मेरी सहेली ने बता दिया इस पर वो बोली की हिंदी की शिक्षिका को एसा नहीं करना चाहिए था ये एक बहुत ही होनहार विद्यार्थी है .ये सुनकर मे और भी जोर से रोने लगी.तब उन्होंने कहा की मे बात करुँगी उनसे आप चुप हो जाओ .फिर अगले पीरियड मे हिंदी की शिक्षिका ने मुझे बुलाया और कहा की आगे से एसा नहीं होना चाहिए और कल टेस्ट है पूरी तेयारी के साथ आना नही तो कक्षा में नही बेठने दूंगी.ये बात मेरे अहम् पर एक बहुत बड़ा धक्का थी .मेने जी-जान से तयारी की और अगले दिन टेस्ट दिया .में सबसे अव्वल रही मेरे २० में से १९ नंबर आये जो अधिकतम थे .मेरा रुझान हिंदी की तरफ और भी बाद गया वो शिक्षिका भी मुझे बेहद पसंद करने लगी और हर छोटे-बड़े कार्य का कार्यभार मुझे सोम्पने लगी में भू बेहद खुश थी इस-से पहले मेरी हिंदी विषय में कोई रूचि नही थी पर उस शिक्षिका की वजह से ही आज में आप सब के सामने अपने विचार लिख रही हु.ये सब उन्ही की देन है .मेने अर्थशास्त्र में स्नातक हु ये अंग्रेजी में है फिर भी मेरा हिंदी से बहुत लगाव है .में तो शिशक दिवस उन्ही को समर्पित करती हु.जिन्होंने मेरी दिशा ही बदल दी .गुरु से बड़ा दर्जा तो भगवान का भी नही है .कबीर जी ने भी क्या खूब कहा है ”गुरु गोबिंद दोनों खड़े काके लागू पाय,बलिहारी गुरु आपने गोबिंद दियो मिलाय”.गुरु मे ही इतनी सामर्थ्य है,इतना ज्ञान है की वो हमे साक्षात् भगवान से मिला सकता है ,गुरु शब्द का सन्धिविचेद किया जाये तो गु+रु होता है .गु का मतलब अंधकार और रु का मतलब भगाने वाला होता हे ..गुरु का मतलब हुआ अंधकार को भगाने वाला..हमारे जीवन सेर अज्ञान रूपी अंधकार को भगाने वाला गुरु ही है.उनके बारे मे तो जितना लिखा जाये उतना ही कम है ..फिर भी अपनी पंक्तियों को समेटते हुआ इतना ही कहना चाहूंगी की आज जो हम शिक्षक दिवस मनाते है अंतर्मन से उसके महत्वा को समझे की गुरु बिना ज्ञान नहीं है ,हमे कदम कदम पर गुरु की सिखाई हुई शिक्षाए याद आती है और वही हमारा सही मार्गदर्शन करती है.विद्यालय बालक की प्रथम सीडी है यही से उसे जीवन का मार्गदर्शन मिलता है उसकी नीव रखी जाती है जो एक उज्जवल भविष्य का शुभारम्भ होती है.और यह कार्य एक अच्छे और अनुभवी शिक्षक के द्वारा ही किया जा सकता है.
धन्यवाद .

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