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समाज ..यानि की आम की लोगों का समूह..हम जिस समाज में रहते है यह हर तरह के लोग है.सबकी हर विषय मे अपनी अपनी और अलग अलग राय है..लेकिन हम भी समाज का हिस्सा होते हुए उसे नकार नही सकते.हमारा मन आशाओ,आक्शंशाओ और तरीश्नाओ से भरा हुआ है.मन तो चंचल है इसमें अनेक प्रकार की इच्छाए जागृत होती है और मरती है.सब इच्छाओ की पूर्ति संभव नही है.और न ही इच्छाओ का कोई अंत है.मन हमारे बस में नही है.मेरे नज़रिए से जिस्मानी रिश्तो के लिए समाज की अनुमति बेहद जरुरी है..यदि नियम,कायदे और कानून ही नही होंगे और आदमी सब कुछ कार्नर के लिए स्वतंत्र होगा तो हमे उस समाज में रहने का या उसका हिस्सा बनने का कोई अर्थ नही रह जायेगा..आधुनिक युग में यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है की हमे यदि समाज में रहना है तो सभ्य तरीके से जीएन चाहिए और सेक्स तो बहुत ही बड़ा मुद्दा है.यदि इस पर समाज की मोहर न हो तो हम घर घर में यही खेल होता देखंगे..समाज की परिभाषा ही बदल जाएगी..आप अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देने के लिए अच्छे से अच्छे और महंगे से महंगे और अपनी हैसियत से बढकर स्कूल में डालते है .जबकि बच्चे का पहला स्कूल उसका घर होता है.कुछ बाते अगर परदे के पीछे रहे तो ही अच्छी लगती है.यदि यही सब होने लगा तो शादी के क्या मायने रह जायंगे ..जिस्मानी जरुरत पूरी करने के लिए समाज में शादियो का प्रचालन हे जो दो आत्माओ का मिलन ही नही दो परिवारों का भी मिलन होता है.यदि शादी से पूर्व ही जिस्मानी रिश्ते बना लिए जायेंगे तो शायद किसी को शादी की जरुरत ही न पड़े.आज की पीड़ी पहले ही बहुत खुलापन लिए हुए है इसे में इन रिश्तो पर मोहर लगाना न्यायसंगत नही है..आपति करने पर युवा पीड़ी का अभी ये हाल हे तो मान्यता देने पर तो बिलकुल ही खुलापन आ जायेगा,समाज की तस्वीर ही बदल जाएगी आप अपनी बहु,बेटी,माता पिता भाई ,बहन किसी के साथ कही जा नही सकते ..अभी तो केवल अँधेरी गलियां ,पार्क या सुनसान जगह इन आशिकों का अड्डा है फिर तो ये घर घर की कहानी हो जाएगी..कोई लगाम न हो तो जानवर भी बहक जाता है हम तो फिर भी इंसान है..इस तेज़ी से बदलते समाज में ,मा बहन की जो भूमिका हे वो निरर्थक होकर रह जाएगी.में इस बात से इनकार नही करती की इंसान को जिस्मानी रिश्तो की जरुरत नहीं है लेकिन हमारे समाज में इसकी भी एक उम्र और सीमा तय की गई है.यदि समाज की रजामंदी महत्वपूरण न हो तो आप अपने बच्चो को भी नही रोक पाओगे एसा करने से…अभी हमारे भारत देश में जब शादी से पहले जिस्मानी रिश्ते बनाने की अनुमति नहीं है,तब इतना बुरा हाल है की ओरत क्या छोटी बच्चिया तक तो सुरक्षित नहीं है,बुज़ुर्ग ओरतो को भी नही बक्शा जाता ..तो सोचिये अनुमति मिलने पर क्या हश्र होगा इनका…फिर तो कोई कानून नाम की चीज़ ही नही रह जाएगी .आप किसी पर ऊँगली नही उठा सकता ,किसी की थाने में रिपोर्ट नही कर सकते,किसी को मना नही कर सकते ..बस केवल चुप रहकर तमाशबीन बन सकते है..क्या आपने इसे ही समाज की कल्पना की है ..इस धरती पर जहा श्रीराम ने जन्म लिया,कृष्ण ने जन्म लिया जहा सेंकडो मंदिर,मस्जिद ,गुरूद्वारे और चर्च है..जहा घर घर में सुबह उठाकर पुजाका नियम या भगवान का किसी न किसी रूप में सिमरन है….इसी धरा की ये दुर्गति ..में तो बिलकुल सहमत नहीं हु..सेक्स की पूर्ति के लिए हमारे समाज में शादी का नियम है जो साथ साथ हमारा वंश बड़ाने का भी कार्य करती है .ये एक स्वाच और आदर से परिपूरन नियम हे फिर इससे पहले जिस्मानी रिश्ते बनाकर क्या मिलेगा..शरीर की भूख तो कभी खत्म ही नही होगी तो क्या इसके लिए समाज के लोगो को,नियमो को दाव पर लगाना ठीक होगा.मेरे हिसाब से ये न्यायसंगत नही है ..फिर शादी जेसी परम्परा का कोई मायने नही रह जाता ..अनेतिक और गेर क़ानूनी रूप से बनाये गये रिश्ते ही भारत में एड्स जेसी बीमारी के जन्मदाता है…क्यूंकि स्वीकृति मिलने पर एक से सबंध नही रहेगा ,अनेको से होगा जो इस स्वछंद भारत की गरिमा पर धब्बा होगा…आधुनिक दिखने के और भी तरीके है..पर ये तो केवल मनोरोग ही है…और स्वीकृति मिलने पर लाइलाज हो जायेगा..अपने सुखद भविष्य के लिए ऐसी सोच को त्यागना ही बेहतर होगा.
त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हु .
धन्यवाद् .
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