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आज के संत,सत्संग और सत्संगति
आज के युग को एक तरफ कलियुग का प्रथम चरण कहा जाता है तो वही दूसरी तरफ इस युग में संतो की इतनी भरमार हो गई है की जहाँ देखो वही भगवा रंग के चोलाधारी या गैर चोलाधारी संत उपदेश देते दिख जायेंगे .माथे पैर तिलक लगाने से या चोला धारण करने से या उपदेश देने से कोई संत महात्मा नही बन जाता और ना ही उनकी संगत में बेठने को सत्संग कहा जायेगा भारत देश संतो और गुरुओ का देश है सही मायने में भारत की पहचान भी यही है भारत भूमि संतो और गुरुओ की जननी है इसमें कोई दो राय नही है संत से अभिप्राय है जो सत का आचरण करता है उसे ही संत कहा जाता है .सत माने सच्चाई ,जो सच्चाई के मार्ग पर निडर होकर चले वही संत है .पहले तो कही कही कोई संत महात्मा दिखाई देते थे लेकिन अब तो आपको नाम याद करने भी मुश्किल हो जायेंगे इतने संत अवतरित हो चुके है इस भारत भूमि पर .अभी थोड़े दिन पहले ही अखबार में खबर पड़ने को मिली की एक संत ने आवेश में आकर एक व्यक्ति को तमाचा मार दिया और अपशब्द बोले.क्या अब यही संतो की परिभाषा रह गई है.पहले गृहस्थ आश्रम को ही सबसे बड़ा सत्संग कहा जाता था.लेकिन अब तो बाहर घुमने का साधन मात्र रह गया है सत्संग.में ये नही कह रही की आज के दोर सच्चे भक्त ,सत्संगी या संत नही है लेकिन अपवाद भी मोजूद है जो मुझे सोचने पर मजबूर करते है.आज अपनी छवि को उज्जवल बनाने के लिए कोई भी उपदेशो या भाषण का सहारा ले लेता है.तो क्या वो संत हो गया संतो का एकमात्र उद्देश्य दुसरो को सत्मार्ग पर चलाना है ना की कलयुग के वशीभूत होकर खुद गलत आचरण करना है .इसका एक सशक्त उदहारण है स्वामी नित्यानंद जी महाराज जो कुछ दिनों पहले ही एक मशहूर तमिल फिल्म अभिनेत्री के साथ रंगे हाथो पकडे गये थे .जो उनके अनुयायियो और भक्तो के लिए एक गहरा सदमा और धर्म के नाम पर गहरा आघात था.अब आप ही बताएये ऐसे संतो की संगती पाकर मनुष्य क्या सीखेगा .सत्संगति आत्मा संस्कार का महत्वपूर्ण साधन है उत्तम प्रकृति के मनुष्यों के साथ उठना बैठना ही सत्संगति है .मानव को समाज में जीवित रहने तथा महान बननेके लिए सत्संगति परम आवश्यक है.यदि सत्संगति मानव को महान बनती है तो कुसंगति उसे क्षुद्र. सत्संगति बुददी की जड़ता को हरती है,वाणी में सच्चाई लाती है,सम्मान और उन्नति का विस्तार करती है .कांच भी सोने के आभूषण में जड़े जाने पर मणि की शोभा प्राप्त कर लेता है .सत्संगति व्यक्ति को अज्ञान से ज्ञान की और ,असत्य से सत्य की और,अंधकार से प्रकाश की और ,जड़ता से चेतन्य की और,घृणा से प्रेम की और ,इर्ष्या से सोहार्द की और तथा अविद्या से विद्या की और ले जाती है .इतिहास में अनेक उदहारण भरे पड़े है की सत्संगति की वजह से व्यक्ति का जीवन ही बदल गया .कुख्यात डाकू रत्नाकर सत्संगति के प्रभाव से वाल्मीकि बन गये.महान पुरुषो का साथ अत्यंत लाभकारी होता है,बशर्ते वो महान पुरुष हो .कमल के पत्ते पर पड़ी पानी की बूँद भी मोती जेसी शोभा देती है .संत कवि तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है -बिनु सत्संग विवेक न होई -..सत्संगति की महिमा का बखान करते हुए कबीर जी ने भी कहा है,-कबीरा संगत साधू की,हरै और की व्याधि ..संगत बुरी असाधु की,आठों पहर उपाधि.-..कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है .गंगा जब समुन्द्र में मिलती है तो वो भी अपनी पवित्रता खो देती है .महाकवि तुलसीदास जी ने ठीक कहा है .-सज्जनों के साथ रहकर दुराचारी भी अपने दुष्कर्मो को त्याग देता है.लोहे के साथ पवित्र अग्नि को भी लुहार अपने हथोड़े से पीटता है .कुसंगति के कारण महान से महान व्यक्ति भी पतन के गर्त में गिरते देखे गये है.
विद्यार्थी जीवन में सत्संगति का अत्यंत महत्व है.इस काल में विद्यार्थी पर जो भी अच्छे बुरे संस्कार पड़ जाते है वे जीवन भर नही छुटते.अतः युवकों को अपनी संगती की और से विशेष सावधान रहना चाहिए .विद्यार्थियों की निर्दोष तथा निर्मल बुध्धि पर कुसंगति का वज्रपात ना हो जाये ,यह प्रतिशन देखना अभिभावकों का भी कर्तव्य है.
त्रुटियों के लिए क्षमाप्रार्थी हू.
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