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कहीं गलत राह पर तो नहीं अरविंद !!!

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राजनेताओं पर छोड़े गए आरोपों के तीर से भारतीय राजनीति में हड़कंप मचाने वाले नवोदित नेता अरविंद केजरीवाल ने अपना अगला शिकार भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को बनाया. केजरीवाल ने नितिन गडकरी को व्यापारी बताते हुए यह आरोप लगाया है कि उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता अजित पवार के साथ मिलकर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के किसानों का शोषण किया. पिछले कई दिनों से नितिन गडकरी के काले कारनामों का पर्दाफाश करने के संकेत दे चुके अरविंद बुद्धवार को आरोपों की लंबी फेहरिश्त के साथ मीडिया से मुखातिब हुए. उन्होंने मीडिया को बताया कि जिस जिले में पानी की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं वहां गडकरी की कंपनियों को पानी दिए जा रहे हैं.

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कुछ दिन पहले और शायद अभी भी कांग्रेस की नींद को हराम करने वाले केजरीवाल ने इस बार भाजपा के जिस नेता को टारगेट बनाया है वह भाजपा का कम और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ज्यादा करीबी है. नितिन गडकरी की जो पार्टी में भूमिका है वह एक लोकप्रिय नेता की नहीं बल्कि पार्टी को चुनाव के समय धन उपलब्ध कराना है और यह बात उनके देश के बड़े-बड़े व्यपारियों से रिश्ते होने से जाहिर हो जाता है.

अब सवाल उठता है कि अरविंद ने इस बार जिसको अपना निशाना बनाया है उससे क्या उनका मजबूत राजनैतिक आधार बनता दिख रहा है. क्योंकि पिछले दो आरोप जो उन्होंने कांग्रेस के दो महत्वपूर्ण व्यक्तियों पर लगाए थे उनसे उन्हें काफी बड़ा जनाधार मिला था. लेकिन इस बार आरोप कुछ फीका-फीका सा लगा. भले ही उनके आरोपों में दम हो लेकिन उनके इस आरोप में कहीं न कहीं संवेदना और हाइप की कमी दिखी जो पिछले दो आरोपों में देखी गई. अपने प्रेस कॉफ्रेंस में जो उन्होंने खुलाशा किया इसमें कोई नई बात नहीं थी इसे हर कोई जानता था. तो क्या मान लें कि इस बार के आरोपों से अरविंद केजरीवाल जनता के दिल में जगह नहीं बना पाएंगे. अगर ऐसा होता है तो उनके आरोपों की धार कुंद हो हो जाएगी.

अगर अरविंद सत्ताधारी दल के काले कारनामों की पोल खोलने की पुरानी नीति पर चलते तो वह विपक्ष के समर्थन के साथ आम जन की भी अच्छी सहानुभूति प्राप्त कर लेते. जिस तरह से उन्होंने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा और उसके बाद कांग्रेस के रसूखदार नेता सलमान खुर्शीद पर आरोप मढ़े उससे कांग्रेस पूरी तरह से बैकफुट पर दिखाई दे रही थी. लेकिन नितिन गडकरी का मुद्दा उठाकर उन्होंने अपने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की खिचड़ी बनाने की कोशिश की है. एक सबसे जरूरी रणनीति, जो अरविंद अपनाने से चूक गए लगते हैं, यह है कि उन्हें केवल आरोप लगाने की बजाय सबूत पेश कर कानूनी लड़ाई लड़नी चाहिए थी. लेकिन अरविंद कहते हैं कि कि वह केवल जनता को जागरुक करना चाहते हैं ताकि लोग राजनेताओं की काली करतूतों से वाकिफ हो जाएं. शायद अरविंद ये भूल गए हैं जनता हमेशा ही नेताओं के गैर-कानूनी कृत्यों से वाकिफ रही है लेकिन उसके पास इन नेताओं को स्वीकार करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होता. इसलिए गलत काम करने वाले को बिना सजा दिलवाए आप कोई परिवर्तन नहीं कर सकते. अरविंद केजरीवाल को यह समझना होगा कि बिना समग्र रणनीति बनाए आज के राजनीतिक हालातों में टिकना बेहद मुश्किल है.

देश में इतने भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं कि जनता किसी एक मामले को याद नहीं रख सकती. यही जनता आज किसी राजनेता को भला-बुरा कहती है लेकिन चुनाव के समय इन्हीं राजनेताओं के लालच में पड़कर इन्हें ही वोट दे देती है. इसलिए सब कुछ जनता पर छोड़ने की बजाय अगर किसी एक राजनेता पर आरोप लगाने के साथ ही हर तरफ से घेरकर उसे उसकी सही जगह पर पहुंचाया जाए तो बात ही कुछ और होगी. एक साथ कई भ्रष्टाचारियों और अपराधियों को टारगेट बनाने से गंभीर से गंभीर आरोपों की धार भी कुंद हो जाती है. ऐसा करने से डर है कि कहीं अरविंद के आरोप आसमानी बुलबुले ना सिद्ध हो जाएं और भ्रष्टाचारी मौज मनाएं.arvind-kejriwal1

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