Menu
blogid : 11130 postid : 45

भारत और इंडिया

antardwand
antardwand
  • 43 Posts
  • 141 Comments

“रेप की घटनाएं भारत में कम इंडिया में ज्यादा होती हैं, क्योंकि वहां विदेशी सभ्यता का असर ज्यादा दिखाई देता है, आप देश के गांवों और जंगलों में देखें जहां कोई सामूहिक बलात्कार या यौन अपराध की घटनाएं नहीं होतीं. यह शहरी इलाकों में होते हैं. महिलाओं के प्रति व्यवहार भारतीय परंपरागत मूल्यों के आधार पर होना चाहिए.” – आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

आदरणीय पाठकगन,
हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में हुई बेहद खौफनाक और घिनौनी गैंग रेप की घटना के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का यह बयान एक विवादस्पद मसला बन गया है. अपने सिलचर दौरे के दौरान भारत के ग्रामीण और शहरी इलाकों को भारत और इंडिया के रूप में संबोधित करते हुए मोहन भागवत का कहना था कि रेप और बलात्कार की घटनाएं ‘भारत’ में कम ‘इंडिया’ में ज्यादा होती हैं. एक ओर जहां अपना पक्ष रखते हुए मोहन भागवत ने कहा कि जैसे-जैसे हम अपनी परंपराओं और मूल्यों से दूर होते जाएंगे वैसे-वैसे आपराधिक वारदातों में संलिप्त होते जाएंगे.

वहीं दूसरी ओर उनके इस बयान की भरपूर आलोचना करने वाले लोगों का कहना है कि सर्वप्रथम तो भारत और इंडिया में कोई अंतर नहीं है. इसीलिए सबसे पहले तो मोहन भागवत को देश को दो भागों में बांटने के लिए माफी मांगनी चाहिए. ऐसे लोगों का कहना है कि आमतौर पर ऐसा नहीं होता कि बलात्कार की घटनाएं शहरी क्षेत्रों में ज्यादा हों, जबकि देखा यह जाता है कि ग्रामीण और छोटे कस्बों में दबंग ऐसी घटनाएं कर पीड़िता को थाने तक पहुंचने ही नहीं देते. उसे डरा-धमका कर किसी भी प्रकार की शिकायत करने से रोक लिया जाता है. पुलिस और प्रशासन की उन दबंगों के साथ सांठ-गांठ होने के कारण पीड़िता को यह ज्ञात होता है कि उसके आरोपों को अहमियत नहीं मिलेगी इसीलिए वह खुद ही अपनी शिकायत दर्ज करवाने नहीं जाती. क्रिमिनिल लॉ जर्नल में प्रकाशित आंकड़ों पर नजर डालें तो हाई कोर्ट में 80 फीसदी और सुप्रीम कोर्ट में 75 फीसदी रेप केस ग्रामीण इलाकों से दर्ज थे. वहीं गैंग रेप के जो मामले हाईकोर्ट (75%) और सुप्रीम कोर्ट (68%) में दर्ज हैं उनमें से अधिकांश मोहन भागवत के ‘भारत’ में से ही हैं. बस मीडिया और लाइमलाइट में ना आने के कारण यह मामले दबा दिए जाते हैं. शहरी क्षेत्रों में बलात्कार के जो आंकड़े सामने आए हैं उनका महिलाओं के पहनावे और संस्कृति से कुछ भी लेना देना नहीं है, क्योंकि यह तो संस्कारों के अभाव में उत्पन्न मानसिक विकृति और मनोविकार का परिणाम है. ऐसा एक बार नहीं कई बार देखा है गया जब ऐसे मानसिक रोगी छोटी-छोटी मासूम बच्चियों और असहाय युवतियों को अपना निशाना बनाते हैं.images

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply