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महिलाओं के अधिकार “Jagran Junction Forum”

antardwand
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आजकल टेलीविजन पर एक विज्ञापन बहुत लोकप्रिय हो रहा है। इस चर्चित विज्ञापन का कहना है कि पुरुषों की मर्दानगी किसी महिला को छेड़ने में नहीं बल्कि उसकी रक्षा करने में है यह मात्र एक उदाहरण भर है असल मुद्दा एक बार फिर महिलाओं को समान अधिकार दिलवाने जैसे विवादास्पद मसले पर केन्द्रित है
एक स्त्री,बच्चे को जन्म देकर,घर का,समाज का और देश के भविष्य का निर्माण करती है.नारी अबला नही सबला है.बस जरुरत है उसे अपने अन्दर सोये हुए आत्मविश्वास को जगाने की.जब वो अपनी कोख में पल रहे बच्चे को जीवन दान दे सकती है तो क्या नही कर सकती.नारी को अबला बनाने वाले पुरुष ही है और अब वही उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे है की नारी जाती को बराबर का दर्जा मिलना चाहिए.नारी का दर्जा बराबर का नही बल्कि पुरुषों से कहीं उपर है.उसे बस अपनी खोई हुई पहचान वापस लानी है स्त्रियों को अबला कहना उनका अपमान करना ही कहा जायेगा क्यूंकि स्त्री जननी है जन्मदात्री है वह अबला कैसे हो सकती है ? हाँ अपना समाज उसको जरुर अबला बनाने पर तुला है और ऐसा इसलिए है की महिलाएं ही ज्यादा जुल्म महिलाओं पर करती हैं .कन्या भूर्ण हत्या का जिम्मेवार कोन है,यदि महिलाये न चाहे तो एसा कदापि नही हो,लेकिन अपने पति और ससुराल वालों के दबाव में आकर ये कदम उठाना उचित नही. यदि घर और समाज में हो रहे अत्याचारों को नारी जाती सहती है तो उसे कमजोर मत समझिये ये उसकी सहनशीलता है.नारी धरा है और उसमे अतुलनीय सहनशक्ति है जिस दिन घर की चार दिवारों के अन्दर सारी नारी संगठित हो जाएंगी, और वे अपनी असली रूप में आजएंगी उस दिन नारी को अबला समझने वाले, पत्नी के ऊपर अत्याचार करने वालों का क्या हर्ष होगा ! इस समाज ने उसे अबला बना दिया है असल में वह अबला नहीं है ! जहां तक नारी के अधिकारों की मांग का सवाल है, वह उसका हक़ है, नारी स्वयम शक्तिशाली है लेकिन मर्द ने उसे इतना प्रताड़ित किया हुआ है की वह अपनी शक्ति भूल चुकी है, ठीक ऐसे ही जैसे हनुमान जी को अपनी असली ताकत का आभास जामवंत जी ने दिलाया था, उसी तरह नारी के अधिकारों की मांग नारी को उसकी स्वयम की ताकत का आभास कराना है !स्त्री संस्कारों की जननी है हमारे पुरानो में शास्त्रों में यही लिखा गया है की “यत्र नारी पूज्यन्ते तत्र वसन्ते देवताः ” और आज अपना समाज पूजा करना तो दूर उनको सम्मान देना भी जरुरी नहीं समझता और आज यह चर्चा करनी पड़ती है की महिलाओं को समानता का अधिकार देना उनको अबला कहना जैसा है. हमारे देश के- सविंधान में भी अ-ओरतों के लिए अलग से नियम ,कायदे या कानून नही बने फिर ऐसा भेदभाव क्यूँ..जब सृष्टि की रचना करने वाले भगवान ने ही कोई अंतर नही किया तो समाज की क्या बिसात है.महिलाओं को अधिकार देने का उद्देश्य महिलाओं को कमतर आंकना नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही दमन और शोषण की स्थिति से मुक्ति पाने की कोशिश है।इसमें पहल स्वयं नारी जाती को ही करनी होगी.
त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हु …
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