antardwand
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माटी कहे कुम्हार से,
मुझको दे ऐसा आकार,
फिर न चक्का चढू कभी,
मिलूं संग निराकार …
मुझे रंग दे नाम के रंग में,
पकुं मै तप की अगन में ,
सांचा ऐसा लादे मुझको ,
ढल जाऊं मै सत्कर्म में…
चिकना इतना करदे मुझे,
माया टिके न कोई इसपे,
घट ही में अविनाशी सधे,
हो जोत अंदर परकाशी रे …
जग तारन कारण देह धरे,
सत्कर्म करे जग पाप हरे,
चित्त न डगमग मेरा डोले,
ध्यान तेरे चरणों में रहे…
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