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आज के इस आधुनिक युग में स्त्री, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में बराबर की भागीदारी निभा रही है ,फिर चाहे वह घर हो, ऑफिस हो या निजी व्यवसाय.अब महिलायें पहले की तरह असक्षम नही है,अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी है.एक परिपक्व नारी में सब सोचने समझने की शक्ति होती है और उसी परिक्वता के आधार पर वो सारे फैसले लेती है की उसके लिए क्या सही है और क्या गलत. आज के आधुनिक युग में महिलाएं अपने आप को सशक्त, स्वावलंबी और पुरुषों के समकक्ष मानती है.और यदि ऐसे में वें विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध बनाती है तो पूर्ण सहमती से बनाती है और दोनों तरफ से बराबर की भागीदार होती है.
कोई भी धर्म विवाह से पूर्व यौन संबंधो को स्वीकृति नही देता और यदि ऐसा होता है तो युवतियां भी इसमें बराबर की ज़िम्मेदार होती है.वैसे भी पुरुष और स्त्री द्वारा आपसी सहमती से बनाये गये यौन सम्बन्ध में केवल पुरुष को ही ज़िम्मेदार नही ठहराया जा सकता महिला भी बराबर की दोषी है .हमारा जीवन मर्यादाओं से बंधा हुआ है और हमारे समाज में ऐसे रिश्तों को अभी क़ानूनी मान्यता नही मिली है और न ही मिलनी चाहिए .
कोर्ट का फैसला बिलकुल जायज़ है, जब स्त्री हर फैसला लेने में सक्षम है तो स्वेच्छा से बने विवाह पूर्व यौन सम्बन्ध में केवल पुरुष ही दोषी क्यूँ हो ? आधुनिक महिला मानसिक रूप से पूर्णरूपेण सशक्त है.अपने आप को कमज़ोर बताकर या पुरुष द्वारा भरमाये जाने का दोषारोपण कतई उचित नही है .भारतीय समाज विभिन्न धर्मों को माननेवाला और स्त्रियों का आदर करने वाला है तो स्त्रियों को भी समाज और धार्मिक परिपेक्ष को देखते हुए सोच समझ कर ही हर कार्य करना चाहिए..
त्रुटियों के लिए क्षमा प्रार्थी हु
धन्यवाद
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