antardwand
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तमन्नाओं से भरी हुई
जिज्ञासाओ को छुती हुई
पल की खबर नही
ठूंठ की तरह खड़ी हुई
आज का पता नही
कल का ठिकाना नही
चल रही बेबाक सी
किसी का खौफ नही
बनती बिगड़ती फिर सवंरती
कैसी खोखली ये ज़िन्दगी
आगे दौड़ने की होड़ में रह गई पीछे
ताश के पत्तों सी बिखरी हुई
आधी अधूरी सी ये ज़िन्दगी
(आरती शर्मा) —
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